- निराजल व्रत, अटूट ममता, धूमधाम से मनाया गया जीवित्पुत्रिका पर्व,मां के प्रेम और संकल्प का पर्व जीवित्पुत्रिका व्रत पर गांवों में गूंजा जिउतिया का जयघोष
बाजारों में सुबह से ही चहल-पहल रही। सेब, केला, अनार और पूजन सामग्री की खरीदारी के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। गलियों में जिउतिया का धागा बेचते व्यापारी दिन भर घूमते रहे। पुलिस बल की तैनाती से सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रही। शाम ढलते-ढलते गंगा घाटों पर दीपों की पंक्तियां झिलमिला उठीं। मंदिरों में मंत्रोच्चार और घंटियों की गूंज देर रात तक बनी रही। व्रती महिलाएं पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद बांटते हुए घर लौटीं, तो पूरा वातावरण मातृत्व की ममता और आस्था से सराबोर हो उठा। शहर के लक्ष्मी कुंड, ईश्वर गंगी, शंकुलधारा पोखरों पर महिलाओं की काफी भीड़ जमा रही। कथा श्रवण किया गया। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक पूजन और कथा श्रवण के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने से मेले जैसा दृश्य हो गया था। भारी भीड़ को देखते हुए बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई। इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था काफी टाइट रही। पुलिसकर्मियों ने बड़े सूझ बूझ के साथ लाइन लगवा कर लोगों को दर्शन पूजन कराया। लक्सा स्थित माता लक्ष्मी के दरबार को आकर्षक ढंग से सजाया गया। महंतों ने जीवित्पुत्रिका के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह व्रत केवल उपवास नहीं, बल्कि मातृभाव की उस गहरी साधना का प्रतीक है जिसमें संतान का सुख ही मातृ-जीवन का परम पुरस्कार बन जाता है।

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