- आचार्य शुक्ल का अवदान महनीय : व्योमेश शुक्ल

नई दिल्ली (रजनीश के झा)। सरस्वती पत्रिका और महावीर प्रसाद द्विवेदी का दाय बहुत बड़ा है जिसे रामचंद्र शुक्ल के लेखन के मूल और आचार्य द्विवेदी द्वारा उसके संपादित स्वरूप की तुलना करने पर सहज ही समझ आता है। ऐसे मनीषियों के अवदान को नयी पीढ़ी देखे, समझे और उसे आगे बढ़ाए यह नागरी प्रचारिणी सभा का उद्देश्य है। सभा के प्रधानमंत्री और युवा लेखक व्योमेश शुक्ल ने हिंदू कालेज में एक व्याख्यान में कहा कि हिंदू कालेज की हिंदी साहित्य सभा और नागरी प्रचारिणी सभा में केवल नाम साम्य ही नहीं है बल्कि दोनों के मूल में युवा अध्येताओं का संकल्प और समर्पण है। शुक्ल ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल की साहित्यिक अवधारणाओं की चर्चा करते हुए उनके लेखन चिंतन के विभिन्न पहलुओं को श्रोताओं के सामने रखा। शुक्ल ने कहा कि आचार्य ने कविता को मनुष्यता की संरक्षिका बताते हुए उसे मनुष्य के भावों की रक्षा करने वाली शक्ति बताया है। उन्होंने द्विवेदी जी और रामचंद्र शुक्ल के पत्राचार की कुछ पंक्तियों को भी उद्धृत किया। उन्होंने कहा कि आचार्य शुक्ल के निबंध संग्रह चिंतामणि के पंद्रह निबंधों में से दस का शीर्षक मनुष्य है, जो कहीं न कहीं उनकी लोकमंगल की भावना हो उजागर करती है। व्योमेश ने ‘कविता क्या है’ निबंध की लंबी यात्रा और उसके बनने संवरने को भी विस्तार से बताया।
इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और हिंदी विभाग के पूर्व शिक्षक डॉ॰दीपक सिन्हा को श्रद्धांजलि अर्पित करने से हुई। उसके बाद हिंदी विभाग के पूर्व शिक्षक प्रो रामेश्वर राय ने दीपक सिन्हा के बारे में संस्मरणात्मक टिप्पणी की। प्रो राय ने शिक्षक होने का अर्थ बताते हुए कहा कि शिक्षक होने के बाद और कुछ होना शेष नहीं रहता। शिक्षक होने एवरेस्ट की चोटी पर खड़ा होना है ,जहाँ से आप छलाँग तो लगा सकते हो, पर ऊपर नहीं जा सकते। उन्होंने कहा कि दीपक सिन्हा ऐसे ही उदार मनुष्य और बड़े शिक्षक थे। आयोजन में हिंदी साहित्य सभा की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी का परिचय भी विभाग प्रभारी प्रो बिमलेंदु तीर्थंकर ने दिया। प्रो तीर्थंकर ने कहा कि सवा सौ सालों से अधिक समय से कार्यरत हिन्दी विभाग की इस सभा में भारतीय साहित्य के महान और मूर्धन्य हस्ताक्षर समय समय पर आए हैं। आभार प्रदर्शन के साथ आयोजन का समापन हुआ।
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