- अस्सी घाट पर श्री श्री ठाकुर अनूकूलचंद्रजी का 138वां जन्मोत्सव श्रद्धा और सेवा के साथ सम्पन्न
- दीक्षा के पश्चात शिक्षा ही एक स्वस्थ और सुसंस्कृत समाज का निर्माण करती है
विचारों की प्रासंगिकता पर मंथन
धर्मसभा में वक्ताओं ने आज के समय में श्री श्री ठाकुर अनूकूलचंद्रजी के विचारों की मानव निर्माण में प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला। वक्ताओं ने कहा कि ठाकुरजी का संदेश केवल आध्यात्मिक उत्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि वह व्यक्ति के चरित्र, परिवार की संरचना और समाज की दिशा तय करता है। इस अवसर पर विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया गया कि दीक्षा के पश्चात शिक्षा ही एक स्वस्थ और सुसंस्कृत समाज का निर्माण करती है। यह विचार आज के भौतिक और भ्रमित समय में और अधिक प्रासंगिक हो जाता है, जहां मूल्य और अनुशासन की कमी समाज की बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
आदर्श विवाह नीति और सामाजिक संतुलन
वक्ताओं ने ठाकुरजी की आदर्श विवाह नीति पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि विवाह केवल सामाजिक औपचारिकता नहीं, बल्कि संस्कार, जिम्मेदारी और जीवन भर के सहयोग का संकल्प है। ठाकुरजी की विवाह नीति परिवार को सुदृढ़ करती है और सामाजिक असंतुलन को रोकने में सहायक है।
सेवा का जीवंत उदाहरण : चिकित्सा शिविर
जन्मोत्सव के अवसर पर आयोजित बृहद चिकित्सा शिविर ने कार्यक्रम को सामाजिक सेवा की मजबूत आधारशिला प्रदान की। इस शिविर में करीब 750 लोगों ने निशुल्क स्वास्थ्य जांच, परामर्श और दवा वितरण का लाभ उठाया। ब्रॉड और सुपर स्पेशियलिटी विभागों के चिकित्सकों ने अपनी सेवाएं प्रदान कर यह सिद्ध किया कि ठाकुरजी का प्रेम और सेवा का संदेश केवल मंच तक सीमित नहीं, बल्कि ज़मीन पर उतरकर समाज की पीड़ा को समझने का माध्यम है।

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