- जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान : संत गोविन्द जाने

सीहोर। जो परमसुख चाहने वाला हो उसे परम संतोषी होना चाहिए, क्योंकि संतोष ही समस्त सुखों का मूल है और लोभ समस्त दुखों का मूल कारण। जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान, सबसे बड़ा धन संतोष का, अच्छे व्यवहार का है। अगर आपका व्यवहार अच्छा है तो आप जगत के सबसे बड़े धनी है। आप दूसरों को देखकर नहीं जिओ, अपने से छोटों को आगे बढ़ाओ। उक्त विचार शहर के सिंधी कालोनी में जारी सात दिवसीय भागवत कथा के चौथे दिवस संत गोविन्द जाने ने कहे। शनिवार को आस्था और उत्साह के साथ भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। इस मौके पर संत गोविन्द जाने ने राजा बलि और भगवान श्री कृष्ण का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि मनुष्य के मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है। यदि मन में संतोष भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है। जैसे जल के बिना नाव कितने भी उपाय करने पर नहीं चल सकती उसी प्रकार सहज संतोष बिना कभी शांति नहीं मिल सकती। विपन्नाता के दिनों में नाराज होकर नहीं बैठना चाहिए, बल्कि संतोष धारण करना चाहिए, क्योंकि संतोष रूपी अमृत से संतुष्ट मनुष्य के लिए सतत सुख और शांति के द्वार खुले रहते हैं। असंतोष ही सबसे बड़ा दुख है और संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। भागवत कथा में मालवा माटी के प्रसिद्ध संत गोविंद जाने ने संगीतमय मधुर भजनों की प्रस्तुति दी। जिसे सुनकर वहां मौजूद श्रद्धालु खुद को रोक नहीं पाए और प्रभु की भक्ति में मगन हो झूमने लगे। सुख चाहने वाले पुरुष को सदा संतुष्ट रहना चाहिए। संतोष साम्राज्य से भी बढ़कर है। संतोष पारस पत्थर है जो किसी वस्तु को छूता है तो उसे सोना बना देता है। दान के समान दूसरी निधि नहीं है। लोभ के समान दूसरा शत्रु नहीं है, शील के समान कोई आभूषण नहीं है और संतोष के समान दूसरा कोई धन नहीं है। जिसके मन में संतोष है उसके लिए सब जगह संपन्नाता है।
सभी धर्म के संदेशों को जीवन में अवश्य अपनाना चाहिए
संत गोविन्द जाने ने कहा कि भक्तों से कहा कि सभी धर्मों में अच्छी बातें कही गई हैं। लोग किसी व्यक्ति की बात सुने या ना सुने लेकिन सभी धर्म के संदेशों को जीवन में अवश्य अपनाना चाहिए। समाज में सुधार के लिए बच्चों एवं बुजुर्गों को कथा का श्रवण करना चाहिए। क्योंकि श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करने वाले भक्तों को भगवान के प्रति भावना और ज्यादा बढ़ जाती है और उसकी भगवान जरूर सुनता है। जिससे उसके सारे काम बनते चले जाते हैं। जीवन मंत्र और रघुकुल के संस्कारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जीवन में हमेशा लिखे हुए कागज की तरह ही बनो, क्योंकि लिखा हुआ कागज मूल्यवान होता हैं।
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