कविता : घूंघट बनी ज़ंज़ीर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 17 जुलाई 2022

कविता : घूंघट बनी ज़ंज़ीर

घूंघट प्रथा के पर्दो में।


लिपटी है सभी औरतें।।


घूंघट न उठा पाती।


समाज के डर से।।


सुंदर दृश्य न देख पाती।


घूंघट के अंधकार से।।


इस अभिशाप से डरे।


समाज की नारी।


घूंघट को क्यों माना जाता नारी सम्मान?


क्यों लोगों ने बना दिया इसे प्रथा?


घूंघट के परदों से लिपट कर।


भूल जाती अपने सभी सपने।।


समाज की इस प्रथा ने।


नारी को दिया असम्मान।।


जकड़ लिया उसकी आजादी को।


घूंघट प्रथा की जंजीरों ने।।




पूजा गोस्वामी
पूजा गोस्वामी

रौलियाना, उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

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