सब सहती हो मां, क्यों नहीं कुछ कहती हो मां?
चुप क्यों रहती हो मां? अपना पेट काट कर,
सबका पेट तुम भरती हो मां,
अपनी झूठी हंसी के पीछे आंसुओं को छुपाती हो मां,
जब तू आगे खड़ी होती है तो परिवार जीत होती है,
अपने बच्चों की खातिर चट्टान बन जाती है,
मां तेरे अंदर इतनी ममता कहां से आती है?
तू मेरे झूठ में भी सच ढूंढ लाती है,
मेरे दिल की हर बात कैसे समझ लेती है?
तेरे बिना ये दुनिया सूनी सी लगती है,
जो तू साथ है तो दुनिया प्यारी लगती है।।
शिवानी पाठक
कक्षा-11, उम्र-16
उत्तरौड़ा, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड
चरखा फीचर्स

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