कविता : मेरे शहर की सड़कें - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 26 जनवरी 2025

कविता : मेरे शहर की सड़कें

मेरे शहर की सड़कें,

जहां निडरता से घूमना मेरा ख्वाब है,

जुगनू की जगमगाहट अब काफ़ी नहीं,

सड़कों पर रोशनी के खंभों का इंतजार है,

खुली राहें तो पहचानते हैं सभी,

लेकिन जहां मैं कई बार भटकी,

उन सुनसान गलियों से अभी तक अनजान हैं,

भीड़ भरी बस में अनचाहे छू लेना,

सिटी बजाकर शब्दों से चोट देना,

हॉर्न के शोर से सड़क पर डर फैला देना,

उनकी कोई गलती नहीं, ये उनका इलाका है,

ये कहकर उनकी गलतियों का बचाव करना,

तानों की गूंज और थप्पड़ों की मार से,

क़दमों पर बंदिश और सपनों पर वार से,

घर और समाज में ये सब बातें हैं आम,

विकास से दूर और निर्भरता का चेहरा,

अधिकार छीनकर अवसरों पर लगता पहरा,

हिंसा मुक्त है ये घर मेरा,

हिंसा मुक्त है ये समाज मेरा,

हिंसा मुक्त है ये सूनी सड़कें,

ये बस सुनने की बात है,

ये सब कहने की बात है।।



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शुभांगनी सूर्यवंशी
केकड़ी, अजमेर, 
राजस्थान
चरखा फीचर्स

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