आवाज सुनो कोई,
मैं भी कहना चाहती हूं,
नहीं चुप रहना चाहती हूं,
है बहुत सी ख्वाहिशें मेरी,
उसे पूरा करना चाहती हूं,
समाज ने चुप करवाया है मुझे,
तू क्या करेगी ये बोल कर,
तू क्या करेगी ये सोच कर,
ये सब तेरा काम नहीं,
तू बस घर को संभाल,
और तेरा कोई नाम नहीं,
किसने ये तय किया है?
किसने ये नियम बनाया है?
मैं भी अपने मन की करूंगी,
अब ना मैं चुप रहूंगी,
आवाज सुनो कोई,
मैं भी कुछ कहना चाहती हूं।।
निधि टाक
लूणकरणसर, राजस्थान
चरखा फीचर

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