बेचैन रास्ते गाँव के, जैसे किसी कदमों को पुकार रहे हों,
बंद दरवाज़े मकानों के, जैसे अन्दर से दस्तक दे रहे हों,
लोग आज सबकुछ छोड़कर, शहर की ओर चल दिए हैं,
मानो गाँव की नदियाँ रूठकर, समुद्र की लहरों में चल दी हो,
वो गाँव, जो कभी सबकी धड़कन हुआ करता था,
वो आंगन, जहाँ कभी बच्चों की आवाज़ें सुनाई पड़ती थी,
वो खेत, जो कभी फसलों से लहलहाया करती थीं,
आज वह सब कुछ वीरान सा नजर आने लगा है,
क्योंकि इंसान गांव छोड़कर शहरों में आबाद हो गया है।।
भावना
कन्यालीकोट, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड
चरखा फीचर

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