भारत के लिए अत्यंत ही श्रद्धा का केन्द्र मानी जाने वाली अमरनाथ यात्रा पर एक बार फिर से आतंकी हमले को भारत को सीधी चुनौती का पर्याय माना जा रहा है। यह बात सही है कि यात्रा को लेकर आतंकियों की मिली धमकी के बाद गृह मंत्रालय ने इस बार सुरक्षा के अतिरिक्त प्रबंध किए थे, लेकिन इसके बाद भी हमला हो जाना, कहीं न कहीं हमारी सुरक्षा कमियों को ही उजागर करता है। जिस बस पर आतंकी हमला हुआ, उसके बारे में कहा जा रहा है कि वह श्राइन बोर्ड में पंजीकृत नहीं थी। चलो मान लेते हैं, लेकिन आतंकियों ने सुरक्षा बलों को भी निशाना बनाया, यह सुरक्षा बल अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा कर रहा था। सीमा पर आतंकवाद को मिल रहे करारे जवाब के बाद पाकिस्तान के संरक्षण में अपनी योजना को अंजाम देने वाले लश्कर-ए-तैयबा के खूंखार आतंकियों ने अमरनाथ यात्रियों पर हमला करके बहुत ही कायराना पूर्ण कार्यवाही की है। अनंतनाग जिले के बटेंगू में किए गए इस हमले में आठ शिवभक्त यात्रियों की मौत हो गई।
पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को भारत लम्बे समय से भुगत रहा है, इससे पहले भी तीन बार अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाया गया था। उस समय आतंकवादियों का साफ कहना था कि अमरनाथ यात्रा रोकी जाए नहीं तो गंभीर परिणाम होंगे। आतंकियों की यह धमकी मात्र धमकी ही साबित हुई, क्योंकि इस धमकी के बाद अमरनाथ यात्रा के प्रति लोगों का रुझान बढ़ता ही गया और पहले से कहीं अधिक श्रद्धालु यात्रा में जाने लगे। यही बात पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित किए जाने वाले आतंकियों को अच्छी नहीं लगी होगी। भारत में आतंक को फैलाने में लगे कुछ जयचंद पाकिस्तान जैसी भाषा बोलकर आतंक को बढ़ावा देने में अप्रत्यक्ष रुप से सहयोग करते हैं। यहां सेना पर आक्रमण करने वालों को मानवाधिकार के नाम पर बचाने का प्रयास किया जाता है, लेकिन अमरनाथ यात्रियों पर हमला करने वालों के प्रति इन मानवाधिकार प्रेमियों के मुंह बंद हो गए हैं। क्या इन हिन्दू तीर्थ यात्रियों के मानवाधिकार नहीं हैं? साफ है कि जिन हमलों में हिन्दू मारे जाएं, तो इनको ठीक लगता है, लेकिन कोई अपराध करने वाला मुसलमान मारा जाए तो नकली देशभक्ति का आवरण ओढ़ने वाले यह कथित बुद्धिजीवी हायतौबा मचा देते हैं। इन लोगों को अब भी सामने आना चाहिए, क्योंकि अब असली देश भक्ति का सवाल सामने है। हम यह भी जानते हैं कि आतंकवादियों को यहां पूरा सम्मान दिया जाता है, कांगे्रस के शासनकाल में उन्हें अत्यंत सम्मानजनक संबोधन दिया गया है। अभी हाल ही में एक कांगे्रसी नेता ने कहा भी था कि अगर कांगे्रस की सरकार होती तो बुरहान वानी की मौत नहीं होती। अब यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि बुरहान वानी कौन था? सभी जानते हैं कि भारतीय सेना के खिलाफ जहर भरे वातावरण को जन्म देने में बुरहान सबसे आगे था, वह सीधे तौर पर पाकिस्तान का प्रतिनिधि भी था। अभी हाल ही में बुरहान की बर्सी के नाम पर किए जाने वाले कार्यक्रम का जहां पूरा देश विरोध कर रहा था, वहीं धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करने वाले नेता और कथित बुद्धिजीवी इन देशद्राहियों को समर्थन देते दिखाई दे रहे थे। अब सवाल यह आता है कि क्या हमें इस बात का ज्ञान नहीं है कि हमें देशद्राही और देशभक्ति में अंतर भी दिखाई नहीं देता।
भारत के मुगलकालीन इतिहास का अध्ययन किया जाए तो यही परिलक्षित होता है कि मुगलों ने हिन्दू आस्थाओं पर जमकर प्रहार किया। वर्तमान में कई धार्मिक स्थानों पर उसके अवशेष आज भी दिखाई देते हैं। वास्तव में दूसरे धर्म को कुचलने की कार्यवाही करना मानसिक दोष ही कहा जाएगा। आतंकवादी भी लगभग वैसा ही काम कर रहे हैं। अमरनाथ यात्रियों पर किया गया हमला, हिन्दू आस्था पर अमानुषिक आघात है। इसकी जितनी निन्दा की जाए उतनी कम है। लेकिन निन्दा एक सीमा तक ही की जा सकती है। सवाल यह आता है कि हम निन्दा से कब तक काम चलाते रहेंगे। क्या हम अपनी रक्षा के लिए सार्थक और मजबूत कदम नहीं उठा सकते। यह बात सही है कि किसी भी बात का प्रतिकार करना सही नहीं है, लेकिन देश की रक्षा के लिए आतंकी आक्रमण का प्रतिकार करना किसी भी तरीके से गलत भी नहीं है। किसी भी देश को अपनी सुरक्षा करने का अधिकार है। अमरनाथ यात्रा को रोकने के लिए किए गए इस आतंकी हमले के बाद आतंकियों के मंसूबे ध्वस्त होते दिखाई दिए हैं। भगवान शिव के नाम का जाप करते हुए अमरनाथ यात्रियों ने अपनी यात्रा को आतंकी हमले के बाद भी जारी रखा है। इससे आतंकियों को यह साफ संदेश गया है कि आस्था कभी भी आतंक से डरती नहीं है। लेकिन आतंकियों ने अमरनाथ भगवान की आस्था को डिगाने का कृत्य किया है। किसी की आस्था को मिटाने के लिए किया गया कार्य विद्वेष की कार्यवाही ही मानी जाएगी, लेकिन आस्थाएं कभी नहीं मिटती हैं। भारत में तो कहा जाता है कि धार्मिक यात्रा के समय किसी की मौत हो जाती है, तो उसे मोक्ष प्राप्ति होती है। इसलिए आतंकवादी इस बात को अपने मन से निकाल दें कि डर के कारण कोई भी यात्रा बंद हो सकती है।
यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि पाकिस्तान के आतंकियों द्वारा संचालित किए जाने वाले लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी हमला करने वाले स्थान पर कैसे पहुंचे। यह जांच का विषय है, लेकिन इसके पीछे जो तर्क दिए जा सकते हैं, वह यह संकेत जरुर करते हैं कि आतंकियों को भारत के नागरिकों से सहायता मिलती है। अगर यह सहायता नहीं मिली होती तो क्या आतंकवादी यह पता करने में सफल हो सकते थे कि अमरनाथ यात्रियों का जत्था इस समय कहां है। भारत सरकार को अपने गुप्तचरों के माध्यम से यह पता लगाना ही होगा कि आतंकियों को मदद करने वाले कौन हैं? पाकिस्तान भविष्य में कोई हरकत न कर सके, इसके लिए हमें तैयार रहना होगा और ऐसी ठोस रणनीति तैयार करनी होगी जिससे पाकिस्तान भारत की ओर मुंह उठाकर भी न देख सके। भारत सरकार को अब अपनी नीतियों में ठोस बदलाव करके आतंकियों को जवाब देना चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृति न हो सके।
सुरेश हिन्दुस्थानी
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